राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था की जब कोई तुम्हारे एक गाल पे थप्पड़ मार दे तो उसके सामने दूसरा गाल भी कर दो की लो भाई इसपे भी मार लो.
और हम आज्ञाकारी राष्ट्रपुत्र की तरह उनकी बात को मानते आये हैं.
पाकिस्तान के आधे कश्मीर पे आजादी के वक़्त ही कब्जा कर रखा है जिसे सरकार आज तक नहीं छुडा पाई. उसी के तर्ज पे चीन ने भी हमारी जमीं पे झंडा लहरा रखा है. और ताज़ी घटना में भी उसने कुछ और जमीं हथियाए हैं. हमारी सरकार के सुस्त विरोध की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन के रह गयी.
घटना चाहे बदल जाये, पर मायने वही हैं , थप्पड़ के आगे दूजा गाल परोसने की.
हमारी सरकारे चाहए कांग्रेसी हो या नॉन कांग्रेसी , कभी भी ऐसा कोई कड़ा कदम नहीं उठा पाई की बाहरी तकते भारत के जमीन पे कदम रखने में पहले कम से कम एक बार भी सोचे.
सरकारों के इसी ढुलमुल नीति का परिणाम है की नेपाल और बांग्लादेश भी (एक पिद्दी और दूसरा पिद्दी का शोरबा) भारत को बन्दर घुड़की दे देते हैं.
एक चीनवासी का बयां आय था की चीन चाहे तो भारत के २८ टुकडे करा सकता है
बात तो सोलह आने सच है. कुछ राष्ट्रवादियों को मेरी ये बात अखर सकती है. पर पहले अपने गिरहबान में झांक के देखने की जरुरत हैं. सच का सामना खुद ब खुद हो जायेगा. भारत राज्य के २८ इकाइयों के राग भी तो अलग ही मालूम पड़ते हैं. कही जातीयता उफान पे है तो कही क्षेत्र्यिता हिलोर . मार रही है कही कट्टर धर्मवाद है तो कही अलगाववाद .
ऐसे में चाइना क्या कोई भी भारत के टुकडे करने के सपने देख सकता है. सपनो पे तो कोई रोक नहीं है.
चीन एक आर्थिक महाशक्ति है और साथ ही साथ सामरिक रूप में भी भारत से आगे है. दोनों देश की तुलना की जाये तो चीन हर मामले में आगे है. चीन की विकास दर भारत के विकास दर से २-३ प्रतिशत ज्यादा है. क्षेत्रफल के बारे में तुलना करने का सवाल ही नहीं है और जनसँख्या के बारे में भी यही आलम है.
चीन के बनाये सामान भारत के बाजारों में धड़ल्ले से बिकते हैं. दूर दराज के क्षेत्रो की बात न कर के अगर राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो दुकानों पे बड़े बड़े बैनरों के साथ की "यहाँ चाइना का माल मिलाता है" बेचे और ख़रीदे जाते हैं. क्या इससे आर्थिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुचता? क्या कर रही है सरकार इस बारे में?
चीन के पास सैनिको की संख्या ज्यदा है, परमाणु बोम्ब भी ज्यादे हैं, तोप, पनडुब्बी, लड़ाकू विमान सभी कुछ भारत के तुलना में ज्यादा हैं. मतलब की हर मामले में वो भारत से ज्यादा है. आगे है.
देश के बाहरी ताकतों के साथ भारत की तुलना के बाद अगर डर लगे तो वाजिब ही हैं. नेताओ के बयान से थोडी राहत मिलाती है की हमारे पास बाहरी ताकतों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन मौजूद हैं. हम अपने विरोधियो का मुह तोड़ जबाब से सकते हैं
पर क्या करे? दिल है की मनाता नहीं.
गृहमंत्री का बयान आता है की यहाँ सभी सुरक्षित हैं. और उसके अगले दिन राजधानी दिल्ली में बम होने की गुमनाम कॉल के बाद सारा सुरक्षातंत्र पुरे दिन गरबा करता हुआ नजर आता है.बम होने की खबर झूटी निकती है और काल करने वाले का सुराग भी पता नहीं लग पता है.