बुधवार, 6 जनवरी 2010

नए साल में क्या उखाड़ेंगे?

साल २००९ के शुरू में भारतीय संस्कृति की ठीकेदारी चलाने वाले कुछ दलों ने जब १४ फ़रवरी का विरोध किया तो लगा की कोई तो है जो अपनी संस्कृति को बचाने का उद्यम कर रहा है. भले ही औरतो की पिटाई भरे बाजार क्यों ना करनी पड़े. उनके कपडे फाड़ के सडको पे दौडाना पड़े. बड़े उद्देश्य छोटी कुर्बानिया तो मांगते ही हैं.

विकाश स्वरुप के नोवेल पे बनी स्लमडॉग मिलिअनरिज को ओस्कर अवार्ड मिला . सारे हिंदुस्तान की जय हो हुई. रहमान तो योग्य हैं ही..उनको ओस्कर मिला ख़ुशी हुई.


आर्थिक मंदी ने तो सारी दुनिया की फाड़ दी , भारत की थोड़ी कम फटी. तो लगा की उभरती हुई कोई आर्थिक शक्ति है तो भारत ही हैं . नहीं तो घर की मुर्गी दाल बराबर समझ रहे थे.
T२० के मैच और चुनाव एक साथ पड़ जाने के कारण मैच को न्यूजीलैंड में कराने पड़े. चुनाव को आगे बढाया नहीं जा सकता था. मैच आगे बढ़ाते तो करोड़ी का नुकसान होना था. कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था . दोनों कार्यक्रम अपने निर्धारित समय पे ही हुए. साथ ही हमे आइना दिखा गए की हम इतने योग्य नहीं की एक साथ दो बड़े काम कर सके . भले ही हम अपने दुश्मनों को छक्के छुड़ा देने का ढपोर शंख बजाते रहे.

भारतीय विद्यार्थियों की आस्ट्रेलिया में धुनाई होती रही, सरकार खेद व दुख व्यक्त करती रही है. पर उखड़ा कुछ नहीं. हाँ, अमिताभ बच्चन ने आस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय से मिली डॉक्टर की उपाधि लौटा के अपनी नाराजगी जाहिर की .

गे लोगो को शादी करने का कानून सरकार ने बना दिया. लोगो को लगा नए युग की शुरुआत हुई, कुछ ने कहा ये इससे समाज पे बुरा असर पड़ेगा. पर इसी देश में समान गोत्र में शादी करने वालो को सारे आम मौत की सजा पंचायत ने सुनाई. बेचारी सरकार.



ऐसे बहुत से काम है जिनको पुराने साल में नहीं कर पाए.
हम वो गलतिया नए साल में नहीं होगी.
नए साल में कुछ नया करने की काबिलियत हो या ना हओ पर उखाड़ लेने की काबिलीयत तो हैं ही हमारे में.
चलो नए साल में कुछ नया उखाड़ते हैं.

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