सोमवार, 24 मई 2010

ये सिसकन ही जिंदगानी है

करे गुहार वो किस चेहरे से, हर चेहरा बेमानी है,
सिसक सिसक के जी रहे वे, ये सिसकन ही जिंदगानी है,

किस्मत को या रब को कोसे, कोसे से ना रोटी मिलती,
मेहनत भी न कर पाते , बिन रोटी ना जां ये हिलती |
करमहीन बना डाला उनने , रोटी देते जो दानी हैं,
सिसक सिसक के जी रहे वे, ये सिसकन ही जिंदगानी है,

थूक के मलहम लगा लगा के, सूखे ओठ को गिले करते,
पेट की आग बुझा लेते तब , आँखों से जब पानी झरते,
पर कुवे जैसा सुखा चूका , आँखों का जो पानी है.
सिसक सिसक के जी रहे वे, ये सिसकन ही जिंदगानी है,

जी रहे थे मर मर के, तो क्या हुआ जो मर गए,
छुटा पीछा नारकीय जीवन से, दुनिया से तो तर गए,
पर, छोड़ गए अपनी औलादे, ये कैसी नादानी है,
सिसक सिसक के जी रहे वे, ये सिसकन ही जिंदगानी है,

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ye siskan he zindgani hai
kya kehna ye kahani ki,
jo tumhari zubani hai

बेनामी ने कहा…

thanks

dweepanter ने कहा…

करे गुहार वो किस चेहरे से, हर चेहरा बेमानी है,

bahut khob likha aapne,